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Sunday, 20 October 2013

'' जंगल ''

कितना अँधेरा
कितनी चुप्पी बटोरे हुए हो
जंगल तुम
बिलकुल मेरे स्वप्न की तरह
वह भी
इतनी चुप्पी बिखेर जाता है
मेरी नींद में
झींगुरों का संगीत स्वर भी
ठीक मेरे स्वप्न की भाँति हैं
पर इस समय
जंगल मैं तुम्हारी सीमा में हूँ
या तुम मेरे स्वप्न में

5 comments:

  1. आपकी लिखी रचना मुझे बहुत अच्छी लगी .........
    बुधवार 23/10/2013 को
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    में आपकी प्रतीक्षा करूँगी.... आइएगा न....
    धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  3. sundar ... is samay me tumhari sima me hu ya tum mere swapan me .. gajab lines badhayi

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  4. बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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