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Friday, 25 October 2013

'' अब शेष है ''

अब शेष है
कुछ अकल्पनीय बातें
अब खींची रह जायेंगी
धरती में लकीरें ही लकीरें
देश/प्रदेश/खेत
/बाग़-बगीचे /मकान /झोपड़ी
सभी का अस्तित्व तय करेंगीं लकीरें

किताबों ने न जाने कब की बातें लिखीं हैं
की बाघ और बकरी
एक घाट में पानी पीते थे
अब मानवीय रिश्तों में पल रही हैं दरारें

अब किसी की माँ की व्याकुलता पर
बेटे की इच्छा मात्र से
नदी अपना मार्ग नहीं बदलेगी

जब नदी के ऊफान से
धरती डूब जाती है
तब कौन बीड़ा उठाएगा
सागर को पीने का

जब कथनी और करनी में
बहुत ज्यादा अन्तर हो
तब किसी का मुख
सूर्य को नहीं छिपा सकता

अब मेरी सोंच में भी
यह बात आ सकती है
की अंधे माँ -बाप को
अकारण काँधे में लादकर
क्यों तीर्थ स्थानों का पूण्य भोगने दूँ

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