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Thursday, 19 September 2013

'' बातें ''

बातों की बनावट में
कहीं भी पहिया जैसी चीज नहीं है
फिर भी बातें
घुमा-फिराकर की जाती हैं

मीलों दूर
किसी से बात करने का जिम्मा
हमने कागज की चिठ्ठी-पत्री पर डाला है

आँखें जब आँखों से बात करती हैं
तब होंठों को
बंद करना पड़ता है अपनी आँखे

बातें कभी-कभी
शहद सी मीठी हो जाया करती हैं

बातें
बरसों बाद खुलती हैं
किसी पुरानी पोटली के गठान की तरह

अपने बड़ों की बातें
परदेश में
खींचलेते हैं कदम
अँधेरे से उजाले की ओर

2 comments:

  1. भावपूर्ण रचना ।

    मेरी रचना:- चलो अवध का धाम

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  2. आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है । जरुर पधारें और फोलो कर उत्साह बढ़ाएं । ब्लॉग"दीप"

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