आदिम युग से
तमाम कोशिशों के बाद
दो पत्थरों की रगड़ में
आग को कैद कर लिया आदमी ने
कभी
स्वयं होकर
जंगल जलाया
और आग ने बताया
कि उसमें कितनी भयावहता है
पृथ्वी के गर्भ की आग
जब करवट लेते-लेते थक जाती
तो
कमजोर जमीन को ध्वस्त कर
निकल पड़ती
पानी के फव्वारों की मानिंद
और धधकती रहती
बेमुद्दत
समुद्र के अंदर की आग
यह
आश्चर्यजनक है
मगर पानी में आग है
और उसकी पहुँच
अब हमारे घर तक है
आदमी ने समाज रचा
उसे गति दी
तो बहुत सी आग ऐसी थी
जो दिखती नहीं थी
ईष्या की आग
बदले की आग
वासना की आग
क्रोध की आग
आग के लिए
सबसे जरुरी था
चूल्हे में रोज जलना
पेट की आग बुझाने के लिए
आग को बुझाने के लिए
आग का जलना
बड़ी अजीब सी बात है
आग का ख़त्म न होने का सिलसिला
चूल्हे की आग
सबकी सबसे ज्यादा जरुरत है
जिनके घर नहीं
वे भी किसी कोने में चूल्हा जला
अपनी खिचड़ी पका लेते हैं
पेट की आग बुझा लेते हैं
मैं हतप्रध सा
तब रह गया
जब एक बेघर ने कहा
''बाबूजी
रोज शमशान की चिता की बची-खुची आग में
पतीले में चांवल पका लेता हूँ
अपनी भूख मिटा लेता हूँ ''
तमाम कोशिशों के बाद
दो पत्थरों की रगड़ में
आग को कैद कर लिया आदमी ने
कभी
स्वयं होकर
जंगल जलाया
और आग ने बताया
कि उसमें कितनी भयावहता है
पृथ्वी के गर्भ की आग
जब करवट लेते-लेते थक जाती
तो
कमजोर जमीन को ध्वस्त कर
निकल पड़ती
पानी के फव्वारों की मानिंद
और धधकती रहती
बेमुद्दत
समुद्र के अंदर की आग
यह
आश्चर्यजनक है
मगर पानी में आग है
और उसकी पहुँच
अब हमारे घर तक है
आदमी ने समाज रचा
उसे गति दी
तो बहुत सी आग ऐसी थी
जो दिखती नहीं थी
ईष्या की आग
बदले की आग
वासना की आग
क्रोध की आग
आग के लिए
सबसे जरुरी था
चूल्हे में रोज जलना
पेट की आग बुझाने के लिए
आग को बुझाने के लिए
आग का जलना
बड़ी अजीब सी बात है
आग का ख़त्म न होने का सिलसिला
चूल्हे की आग
सबकी सबसे ज्यादा जरुरत है
जिनके घर नहीं
वे भी किसी कोने में चूल्हा जला
अपनी खिचड़ी पका लेते हैं
पेट की आग बुझा लेते हैं
मैं हतप्रध सा
तब रह गया
जब एक बेघर ने कहा
''बाबूजी
रोज शमशान की चिता की बची-खुची आग में
पतीले में चांवल पका लेता हूँ
अपनी भूख मिटा लेता हूँ ''
बधाई, अच्छा हुआ कि ब्लॉग बन गया। अब अपनी कविताये देते जाना।
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