'' सृष्टि एक कल्पना ''
हम सभी अचम्भित हैं
की इस नीले आसमान के ऊपर क्या होगा
किस पर टिकी है यह धरती
हलचल है कब से इन समुन्दरों मैं
सब कुछ बंद किताब सा है
वह बंद किवाड़ है
जो फिर न खुल सकेगा
सोचता हूँ
कब पहली बार लाल सुबह
पँख फड़फड़ाती धरती पर उतरी होगी
कैसा लगा होगा धरती को
जब पहली बार
उसने धूप को ओढ़ा होगा
कब पहली बार
हवा के किताब के पहले पन्ने खुले होंगें
और धरती के पोर-पोर मैं
गुनगुनायी होगी हवा
कब पहली बार
आकाश से मोतियों की तरह
नन्हीं -नन्ही बूंदे गिरी होंगी
कैसा लगा होगा
किसी नन्हें पौधे को
मिट्टी के भीतर से ऊगना पहली बार
आँख भर आई होगी धूप की
जब पहली बार अगले दिन के लिए
शाम की लालिमा के साथ वह लौटी होगी
कब पहली बार
मानव की रचना कर
पृथ्वी पर उतारा गया होगा
कब पहली बार
किसी कन्या ने गर्भ धारण किया होगा
और कहलाई होगी माँ
कब पहली बार
आदमी का मौत से हुआ होगा
साक्षात्कार
जो उसकी सोच मैं भी नहीं था
कब पहली बार
अस्तित्व मैं आई होगी लकीरें
और आदमी के माथे की परेशानियां बनी होगी
कब पहली बार
लकीरें उठ खड़ी हुई होंगी
और आदमी ने धरती को बाँटा होगा
जिसका बाँटा जाना बंद होने केअब सारे बंद हैं
हम सभी अचम्भित हैं
की इस नीले आसमान के ऊपर क्या होगा
किस पर टिकी है यह धरती
हलचल है कब से इन समुन्दरों मैं
सब कुछ बंद किताब सा है
वह बंद किवाड़ है
जो फिर न खुल सकेगा
सोचता हूँ
कब पहली बार लाल सुबह
पँख फड़फड़ाती धरती पर उतरी होगी
कैसा लगा होगा धरती को
जब पहली बार
उसने धूप को ओढ़ा होगा
कब पहली बार
हवा के किताब के पहले पन्ने खुले होंगें
और धरती के पोर-पोर मैं
गुनगुनायी होगी हवा
कब पहली बार
आकाश से मोतियों की तरह
नन्हीं -नन्ही बूंदे गिरी होंगी
कैसा लगा होगा
किसी नन्हें पौधे को
मिट्टी के भीतर से ऊगना पहली बार
आँख भर आई होगी धूप की
जब पहली बार अगले दिन के लिए
शाम की लालिमा के साथ वह लौटी होगी
कब पहली बार
मानव की रचना कर
पृथ्वी पर उतारा गया होगा
कब पहली बार
किसी कन्या ने गर्भ धारण किया होगा
और कहलाई होगी माँ
कब पहली बार
आदमी का मौत से हुआ होगा
साक्षात्कार
जो उसकी सोच मैं भी नहीं था
कब पहली बार
अस्तित्व मैं आई होगी लकीरें
और आदमी के माथे की परेशानियां बनी होगी
कब पहली बार
लकीरें उठ खड़ी हुई होंगी
और आदमी ने धरती को बाँटा होगा
जिसका बाँटा जाना बंद होने केअब सारे बंद हैं
कल्पना के उस पार!
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