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Sunday, 31 March 2013

'' थोड़े से लोग ''

बहुत थोड़े से लोग हैं
जो चीजों को कसकर
पकड़ते हैं
मैं पकड़ नहीं पाया
दिन को पकड़ने की कोशिश में
दिन निकल गया
सुबह-सुबह आँख लगी थी कि
दिन निकल गया
चिड़ियों ने घोसलें बनाने
शुरू ही किये थे
कि दिन निकल गया

Thursday, 28 March 2013

''अँधेरे /उजाले

दिन रात के
अँधेरे- उजाले
और जीवन के अँधेरे -उजाले में
कोई समानता नहीं
तय नहीं
कि अँधेरे के बाद उजाला आयेगा
जीवन में रात का अँधेरा होना ही
अँधेरे का होना नहीं होता
जीवन के उजाले
और
रात के अँधेरे साथ-साथ हो सकते हैं
साथ-साथ हो सकते हैं
जीवन के अँधेरे और दिन के उजाले
काश
जीवन में उजाला ही होता
क्योंकि रात का अँधेरा तो तय ही है

माँ

                 ''माँ''

माँ
तुम्हें अपनी रचना में
स्थान दे रहा हूँ
मुझे मालूम है
तुम्हारा अपने गर्भ में
मुझे स्थान देने जैसा पूण्य कार्य
मेरे लिए सम्भव नहीं

माँ
मैं नहीं जानता
कि तुम्हारी परिभाषा
मेरे हाथों लिखी जाए
क्योंकि मै तुम्हारे साथ-साथ
धरती माँ
और तमाम जीव-जन्तुओं की
जननी का अपराधी कहलाऊंगा
क्योंकि माँ को
गिने-चुने शब्दों में
नहीं बाँधा जा सकता

माँ
तुम्हारा कार्य भी 
प्रचारित करने जैसा नहीं
भीतर तक महसूसने
और स्वीकारने जैसा है

माँ
प्रसव के बाद
तुम गीली देह लिए
मौसमों से जूझती हो
आधी-अधूरी नींद में भी
तुम्हारे `हाथ वहीँ जाते हैं
जहाँ कोमल नन्हीं देह होती है

माँ तुम्हारे सीने में
अदभुत जलधारा प्रवाहित है
जो बच्चे का रक्त संचारित करती है
करती है मस्तिष्क का निमार्ण
फिर सागर की गहराई
और ब्रम्हाण्ड के सारे ग्रह-नक्षत्र से
सीधे संवाद करता है आदमी

जहाँ से आरम्भ होती है
बच्चे की किलकारी
और जहाँ होता है अंतिम पड़ाव
दोनों ही देह
माँ की होती है
'' सृष्टि एक कल्पना ''


हम सभी अचम्भित हैं
की इस नीले आसमान के ऊपर क्या होगा
किस पर टिकी है यह धरती
हलचल है कब से इन समुन्दरों मैं
सब कुछ बंद किताब सा है
वह  बंद किवाड़ है
जो फिर न खुल सकेगा

सोचता हूँ
कब पहली बार लाल सुबह
पँख फड़फड़ाती धरती पर उतरी होगी

कैसा लगा होगा धरती को
जब पहली बार
उसने धूप को ओढ़ा होगा

कब पहली बार
हवा के किताब के पहले पन्ने खुले होंगें
और धरती के पोर-पोर मैं
गुनगुनायी होगी हवा

कब पहली बार
आकाश से मोतियों की तरह
नन्हीं -नन्ही बूंदे गिरी होंगी

कैसा लगा होगा
किसी नन्हें पौधे को
मिट्टी के भीतर से  ऊगना पहली बार

आँख भर आई होगी धूप की
जब पहली बार अगले दिन के लिए
शाम की लालिमा के साथ वह  लौटी होगी

कब पहली बार
मानव की रचना कर
पृथ्वी  पर उतारा गया होगा

कब पहली बार
किसी कन्या ने गर्भ धारण किया होगा
और कहलाई होगी माँ

कब पहली बार
आदमी का मौत से हुआ होगा
साक्षात्कार
जो उसकी सोच मैं भी नहीं था

कब पहली बार
अस्तित्व मैं आई होगी लकीरें
और आदमी के माथे की परेशानियां बनी होगी

कब पहली बार
लकीरें उठ खड़ी हुई होंगी
और आदमी ने धरती को बाँटा होगा
जिसका बाँटा जाना बंद होने केअब सारे बंद हैं